Theory of relativity in Hindi | (सापेक्षता के सिद्धांत) हिंदी में

Theory of relativity (सापेक्षता के सिद्धांत) को समझने के लिए हम कुछ समय पहले चलना होगा। कहानी की शुरुआत होती है गैलीलियो गैलीली से |जिन्होंने ने प्रकाश की गति को मापने के लिए दुनिया का पहला प्रयोग किया था | उस समय में इतना दिमाग का उपयोग करना बहुत बड़ी उपलब्धि थी । हालाँकि उन्हें कुछ खास कामयाबी तो नहीं मिली । लेकिन इससे पहले उनको खास कामयाबी मिलते , इससे पहले यातनाओ के चलते उनकी देहांत हो गया। लेकिन गैलीलियो ने अपनी देहांत से पहले बाकि वैज्ञानिको के लिए नए नए रास्ते खोल दिए । उनके बाद आये ओले रोमर(ole roemer) जिन्होंने गैलीलियो द्वारा बनाये गए टेलिस्कोप और जुपिटर की मून की मदद से प्रकाश की स्पीड को माप दिया। हालाँकि की ये रफ़्तार असल रफ़्तार के बहुत नजदीक थी लेकिन फिर भी कुछ अंतर था।

उसके बाद आये Armand Hippolyte Louis Fizeau (आर्मंड हिप्पोलीटे लुइस फ़िज़ियो) जिन्होंने एक व्हील और दो मिरर की मदद से प्रकाश की गति को निकाल दिया जो लगभग लगभग बराबर की वैल्यू थी । फिर आये James Clerk Maxwell (जेम्स क्लर्क मैक्सवेल) , जिन्होंने 1865 में बताया की प्रकाश विद्युत चुम्बकीय विकिरण (electromagnetic radiation) है। और उसकी स्पीड लगभग 3 लाख किलोमीटर/सेकंड है। इतना सबकुछ होने के बाद दो वैज्ञानिको की जोड़ी Michelson–Morley (माइकेलसन-मॉर्ले) ने उस रहस्यमयी ईथर के बारे में पत्ता करने का प्रयास किया , जिसके बिना प्रकाश तरंग यात्रा (light wave travel ) नहीं कर सकती थी ।

इसको समझने के लिए आपको ये समझना होगा की जैसे साउंड को यात्रा करने के लिए हवा और पानी की लहर को यात्रा के लिए वाटर सरफेस की जरुरत पड़ती है । उसी तरह से वैज्ञानिको की दुनिया में ये माना जाता था , की प्रकाश एक तरंग है तो इसको भी ट्रेवल करने के लिए कोई न कोई मध्यम जरूर होगा । जिसका नाम था lumino pheras ईथर। इसी ईथर का पत्ता करने के लिए माइकेलसन-मॉर्ले का उपयोग किया गया लेकिन ये सफल नहीं रहा ।

अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein) के दिमाग में दो थ्योरी में सापेक्षता का विशेष सिद्धांत (special theory of relativity ) सबसे पहले आयी |

तो आइए समझते है सापेक्षता का विशेष सिद्धांत (special theory of relativity ) |

तो आइए समझते है सापेक्षता का विशेष सिद्धांत । अल्बर्ट आइंस्टीन ने सोचा की वो लाइट के साथ रेस लगाए और किसी तरह से लाइट के रफ़्तार तक पहुंच जाएँ । तो उनके लिए लाइट और लाइट के लिए वो सापेक्ष आराम (relative rest ) पर आ जायेंगे। अगर लाइट और आइंस्टीन दोनों सापेक्ष आराम पर आ गए तो आइंस्टीन को मिलेगा एक स्थिर विद्युत चुम्बकीय तरंग  (stationary electromagnetic wave) |

जो की बिल्कुल असंभव था। क्यूंकि यह स्थिति भौतिक विज्ञान (physics) के मैक्सवेल के द्वारा दिए गए विद्युत चुम्बकीय तरंग के नियम को पूरी तरह से गलत साबित कर रही थी । क्यूंकि मैक्सवेल ने ये शाबित कर दिया था की विद्युत चुम्बकीय तरंग बनी तो उसकी रफ़्तार लाइट के रफ़्तार के बराबर होगी । चाहे जो भी हो जाये वेव (wave), स्टेशनरी (स्टेशनरी) नहीं हो सकती। और इस बात का कोई अपवाद (exception ) भी नहीं हो सकता । इन सब का परिणाम (result) निकला की , आइंस्टीन ने देखा की भौतिक विज्ञान (physics) का नियम लाइट के लिए अलग तरीके से काम कर रहे थे और बाकि पूरी दुनिया के लिए अलग तरीके से । पर ऐसा कैसे हो सकता है , तब आइंस्टीन ने मान लिया की लाइट के रफ्तार को पत्ता नहीं लगया जा सकता ।
यहाँ पर एक प्रॉब्लम हुआ की अगर लाइट की रफ़्तार फिक्स है और भौतिक विज्ञान (physics) का नियम भी सही है तो तब क्या होगा जब लाइट को मूविंग (moving) और स्टेशनरी (stationary) ऑब्जेक्ट (object) से छोड़ा जाए।

क्यूंकि भौतिक विज्ञान (physics) के नियम के हिसाब से मूविंग ऑब्जेक्ट(object) से छोड़ी गयी लाइट की रफ़्तार बढ़ जानी चहिए ।

लेकिन इतने सारे वैज्ञानिको ने साबित कर दिया था की लाइट की रफ़्तार फिक्स है। तब आइंस्टीन में सोचा की ऐसा तभी हो सकता है अगर समय अलगअलग लोगो के लिये अलग अलग चले या तय की गए दुरी में बदलाव आ जाये।

Leave a Reply

Your email address will not be published.