Diesel Engine Discovery and Working | डीजल इंजन का आविष्कार कैसे हुआ | डीजल इंजन की शुरुआत कैसे हुआ

डीजल इंजन की शुरुआत होती है स्टीम इंजन के अंत से। भाप के इंजन के बंद होने का प्रमुख कारण था, कम दक्षता (efficiency) और बहुत ज्यादा कोयले की जरूरत। जैसा ही हम सभी को पता है कि इंजीनियर हमेशा कुछ ना कुछ विकास करना चाहते हैं जिससे की देश प्रगति हो सके। स्टीम इंजन के बंद होने के बाद इंजीनियर कुछ ऐसा इंजन ढूंढ रहे थे जिससे की परंपरागत कोयले को छोड़कर किसी और इंजन पर कम कर सके।

लेकिन भाप के इंजन पर बात करने से पहले हम अगर बात करे कोयले की तो, कोयले से एक बहुत ही काम कि चीज मिलती थी जो है। कोल गैस। कोल गैस पर अधारती इंजन लेनोइर (Lenoir) ने 1860 में बनाया था। ये पहला ऐसा इंजन था जिसने स्टीम इंजन को कुछ टक्कर देने की कोशिश की । ये दुनिया का पहला आंतरिक दहन इंजन भी था। पर भाप इंजन को दूर करने के लिए यह काफी नहीं था। इस इंजन की पावर एफिशिएंसी बहुत ही काम थी। अब निकोल्स ओटो ने एक कमाल कर दिया, 4 स्टोक इंजन को अपना लिया। उस समय पेट्रोल की खोज हो चुकी थी। और अब पेट्रोल की इस्तमाल मार्केट में बहुत होने वाला था।

4 स्ट्रोक इंजन कैसे काम करता है?

पहले स्टोक में गैस और फ्यूल का मिक्सचर सिलेंडर के अंदर प्रवेश करता है, दूसरे स्टोक में हमें मिक्स्चर को कंप्रेस किया जाता है, फिर एयर फ्यूल के मिक्सचर को स्पार्क की सहायता से जलाया जाता है। जिससे मिलता है हम एक पावर स्ट्रोक। और चौथे स्ट्रोक में गैस सिलेंडर से बाहर निकलता है।

उसी समय एक और इंजन डेवलप हो चूका था, जो आज के समय बिल्कुल इस्तमाल नहीं होता। इसका नाम था hot bowl heavy oil engine। इस इंजन में एक bowl के अंदर भारी तेल को वेपराइज किया जाता था। जिसके बाद उसके एक्सपेंशन से पैदा हुई गैस, सिलेंडर में छोड़ दी जाती है। जो की पिस्टन को पुस करके इंजन को पावर देती है।

मोटर साइकिल में डीजल का इस्तमाल क्यों नहीं करते?

मोटर साइकिल में डीजल का इस्तमाल क्यों नहीं करते इसका मुख्य करण है डीजल इंजन के द्वारा मचाया जाने वाला शोर और कंपन। डीजल इंजन कम्प्रेशन और इग्निशन पर काम करते हैं, जिसके वजह से बहुत जायदा वाइब्रेशन उत्पन्न होता है। ये वाइब्रेशन किसी भी हल्के वहां को स्थिर बनाने में सबसे ज्यादा समस्या करता है। जिसके कारण मोटर साइकिल में डीजल का इस्तमाल नहीं करते |

हॉर्न बाउल इंजन में, बाउल के अंदर फ्यूल स्प्रे करके इसे गर्म किया जाता है जिसके खराब पिस्टन की सहायता से गैसों को कंप्रेस करके सिलेंडर के अंदर दबाव बनाया जाता है. गर्म होता हुआ फ्यूल के अचानक विस्फोट से पिस्टन को आगे ढकेल देता है और इस तरह से इंजन को पावर मिल जाता है। एक बार इंजन के चलने के बाद हॉट बाउल को बार बार गर्म करने की जरूरत नहीं होती है। क्योंकि वो पहले से ही इतना गरम हो चूका होता है जो बड़ी आसानी से ईंधन को जला सकता है।

अब बताते हैं आपको कि अलग अलग इंजन किस किस काम में आते हैं

पेट्रोल इंजन शुरुआत में कारों को चलाने में बढ़िया काम करता था। गैस इंजन पावर प्लांट में बहुत प्रयोग होता है। और स्टीम इंजन सबसे ज्यादा प्रयोग होता है। क्योंकि किसी इंजन में इतना ताकत नहीं है कि वो भाप इंजन को चुनौती दे सकता है।

ये सारे के सारे इंजन एक ही प्रिंसिपल पर काम करते है । जिस्मे इंधन से उत्पन हीट को वर्क में बदला जाता था लेकिन सबकी हीट को वर्क में बदलने की छमता अलग थी। जिसके कारण ऊर्जा का प्रयोग बहुत ही कम हो पता था।

अब बात करते हैं, डीजल के द्वारा बनाए गए इंजन की। पहले स्ट्रोक में साफ हवा सिलेंडर के अंदर जाएगी। दूसरे स्ट्रोक में उस हवा को कंप्रेस करके तपमान को इस अस्तर तक ले जाया जाएगा जहां पर फ्यूल आते ही जल सके। अब होगा फ्यूल की प्रवेश और तपमान अधिक होने के चलते वो जलेगा जल और देगा एक पावर स्ट्रोक। उसके बाद चौथे स्ट्रोक में सिलेंडर का अंदर भरी हुई जली हुई गैस सिलेंडर से बाहर निकल जाएगी। और इस तरह से तैयार होता है पहला इंजन। लेकिन इसमें कुछ कमिया थी जिसके कारण ये सफल नहीं हो सका ।

इसके बाद एयर ब्लास्ट इंजेक्शन मेथड का प्रयोग किया गया और 1894 में एक बड़ी सफलता मिली और डीजल इंजन चल पड़ा। ये इंजन 27% प्रभावित था। उस समय यह इंजन उपलब्ध सभी इंजन में काफी बढ़िया था।
कुछ समय खराब डीजल इंजन पर अधारित जहाजों का बनाने का काम शुरू हुआ।

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