तीज का त्योहार कब ,क्यों और कैसे मनाया जाता है?

हरतालिका तीज पूजा का शुभ मुहूर्त

हरतालिका तीज मंगलवार, अगस्त 30, 2022
प्रातःकाल हरतालिका पूजा मुहूर्त – 05:58 AM to 08:31 AM

तृतीया तिथि शुरू – 03:20 PM on Aug 29, 2022
तृतीया तिथि समाप्त – 03:33 PM on Aug 30, 2022

तीज की कहानी

एक निस्वार्थ तथा कठिन परिश्रम का फल। जिसमें स्वयं माता पार्वती ने कठिन परिश्रम कर देवों के देव महादेव की अर्धांगिनी बनने का वरदान पाया था।

आज हम उसी कठिन व्रत की बात कर रहे हैं जिसे हम तीज के नाम से बुलाते हैं जिनका पौराणिक इतिहास ही इतना मनोनीत है कि हमें आज तक भी निस्वार्थ प्रेम भाव की ओर प्रेरित करता है। उस तीज व्रत की महत्वता उतनी ही महत्वपूर्ण  है।

सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज आती है। हरियाली माह में आने के कारण हम इसे हरियाली तीज भी कहते हैं। वैवाहिक महिलाओं के लिए यह दिन बेहद खास दिन होता है।

इस दिन वह अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती है। वही कुंवारी लड़कियां मनोवांछित वर या विवाह में आ रही बाधाओं को दूर करने के लिए इस व्रत को करती है। सिंजारा 1 दिन पहले मनाया जाने वाला पर्व है। जिसमें महिलाएं सोलह श्रृंगार कर मेहंदी लगवाती है।

राजस्थान में हरियाली तीज का अत्यधिक महत्व है। तीज के त्योहार पर घेवर बड़े ही चाव से बनाया व खाया जाता है। जिसमें से जयपुर घेवर भारतवर्ष में बहुत प्रसिद्ध है। तीज के दिन कई जगह मनमोहक सवारिया निकलती है। राजस्थान के उदयपुर में सहेलियों की बाड़ी में मनाए जाने वाला तीज का त्योहार बहुत ही आकर्षक व मनमोहक होता है।वही जयपुर के सिटी पैलेस से निकलने वाली सवारी विश्व भर में प्रसिद्ध है और इसे देखने के लिए दुनिया भर से लाखों लोग आते हैं। विदेशी सैलानी भी इस त्योहार का मजा लेने के लिए जयपुर में एकत्रित होते हैं। और आनंद लेते हैं

इस दिन वैवाहिक महिलाएं सोलह श्रृंगार कर बालू रेत से शिवलिंग बनाकर माता पार्वती और महादेव की विधि पूर्वक पूजा व आराधना करती हैं।इस दिन व्रत के साथ शाम को कथा सुनी जाती है। वही कुंवारी लड़कियां प्रातः स्नान कर शिवजी की आराधना में अपना पूरा दिन व्यतीत करती है।

यह एक निर्जला व्रत होता है। इसे कठिन व्रतों में से एक व्रत माना जाता है महादेव-माता पार्वती की पूजन करने से धन, भौतिक सुख तथा विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती है।

इस दिन स्त्रियों के स्थान मायके से श्रृंगार का सामान तथा मिठाइयां उनकी ससुराल में भेजी जाती है। वैवाहिक महिलाएं इस दिन तैयार होकर खेतों में जाती है अपनी सखियों से मिलती है। एक समूह में बैठकर बातें करती है। अपने पुराने दिनों को याद करती है। खेतों में लगे झूलो में झूलती है। प्राकृतिक सुगंध का एहसास ले पाती है। अपने दिन को अपने तरीके से जीने का लुफ्त उठाती है। भक्ति -भाव में पूर्ण महादेव पार्वती जी की आराधना में अपने संपूर्ण दिन को समर्पित कर देती है। घर पर उत्सव मनाया जाता है। लोक नृत्य करती है।

परंतु हमें इस चीज से वाकिफ रहना चाहिए कि “अपवाद हर जगह” है अर्थात आज के परिवर्तनशील दौर में जिस तरह हम भी परिवर्तित हो रहे हैं, उसी तरह हमारे त्योहार या संस्कृति, भी अछूती नहीं है

इस त्योहार का अस्तित्व आज भी वही है, परंतु नीव परिवर्तित हो रही है। यानी अस्तित्व वही ,नीव नई।

समय की भी कमी के कारण सारा सामान बाजार से ही ले आना ,सौंदर्य-श्रृंगार के लिए पार्लर के बाजारों में जाना ,घर में ही शिवलिंग बनाने की बजाय मंदिर में जा कर पूजा आराधना करना। यह सभी परिवर्तन हमें बताते हैं कि हमारी संस्कृति सदा ही प्रगतिशील मार्ग पर अग्रसर रही है।

  • हम परिवर्तन के लिए सदा ही तैयार रहते हैं। फिर चाहे वह हमारे में हो या हमारी संस्कृति में हो।परंतु परिवर्तन सदा ही सही या सकारात्मक हो यह कहना जल्दबाजी होगा क्योंकि अपवाद हर जगह है।

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